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दिव्य गुण से भराल , अवतार ह्ये नारी !

जेनंगती एक्टा भवनेर एकदम मजबुत खाम्बा से अढिक छे , अनंगती कुनह भी देश , घर , समाजेर कलात्मक  द्रिष्टिर छबि एकटा नारी पर निर्भर हचे !जेनंगती धुरीर बिना गाडिर पाईयाला नि चल्बे, नारी बिना इरा संसार नि चल्बे ! नारी एकटा शक्ति साळी रुपत हर्र चीज मजबुतेर सम्मान कराल जाबे !जैरा घर संसारत नारीर सम्मान नाई , उरा घरक नरक कहले भी होबे !
चीर परिचित कवि श्री मैथिलिशरण गुप्तार कबीताखानत नारीर बारे कुछु पंग्ती ला ..


अबला जीवन 
हये तोर काहानी 
आंचलत दुध आर 
चखुत छे पानी !!
वर्तमान समयत समस्त नारी जगतत एकटा श्रोतेर परिचित प्रेरानार पहीचान !!
प्राचिनकालेर नारी 
प्राचिनकालत कुनह भी  कार्य या धार्मिक अनुष्ठानत् नारी बिना पूरा नि हये ! नारीर लिए कुनह भी छेत्रत आसवार जाबार रुकावट नि छिले ! रणभूमित् अए आपनार दिव्य रुपस खड़ा रहे ! नारीर शिक्षा आर  दिक्षार सुरक्षित एवम समुचित प्रबन्ध कराल रहे ! मित्रवान , सृष्टचार जैसा विदुषी नारीर गणना ॠषि मुनिलार संगे करा जाए !आस्ते आस्ते समय परिवर्तन हते गेल आर नारी लाक पर्दार भित्रत, लोकेर संगे बेसी हेलमेल , सामाजिक कार्य आर विभिन्न छेत्रत अग्रज अनुभूति समेत बन्देज लगाए गेल ! शिक्षा आर सामानतार अधिकार छिनते चली गेल ! येनंगती नारीर दुर्दशा से संसार पतनेर रास्ता ती बेशी डेग्रिगेल !आप लागे चे की कलियुगेर पतन जल्दी होइजाबे ! चार दिशा से अशान्ति फैलिते देखते छि !गटे संसारेर लोकला फेर बिश्व युद्ध से डर आर  त्रासेर भावना होइगिसे ! इडा समयत नारीर गुणेर प्रचार प्रसार एकदम आवश्यकता छे ! नारी एकटा अधीक से अधीक  सहन शक्ति\रुपेर प्राणी हए ! सभारे सुखमय जीवन बितोक कहए सोचवार नारी , त्यागेर भण्डार हए नारी , शान्ति आर ममतार देवी हए नारी , असुरेर नाश करवार हए नारी , सारा जगत निर्माण करवार हए नारी ! ओइलात नारी मनुष्य जीवनत भगवानेर रुपत जनम लिसे कहये अनुभूति हचे !इरा क्रूर सामाज नारीलाक प्रताडित ना करी , जिन्दा अग्नि से ना जलाई , अवहेलना ना करी , अपमान ना करी , घरेर चार दिवारित घुट -घुट करे कानवाते ना राखी , कुन्ह भी अहितता ना देखाई , बाध्यता ना बेनायी , सामान व्यवहार करी , नारीर भावना ला बुझी आर कदर करी !
सहनशिलता भराल भण्डार हए नारी
 जुखुन एकटा सालाई खाटी से भगवानेर घर मन्दिरत जाए गेछा जला जाबे ओइराए एकटा सालाई खाटी से संसार जगत भष्म करा भी जाबे ! नियम गटे ती ऐके हए परन्तु तरिकाला हामा अलग -अलग प्रयोग करेची ! अनंगती नारी जगत सत्य युगत् भी छिले आर आझिकार युग कलियुगत भी छे परन्तु हामा नर मानुष ला नारीर दिव्य रुप बुझवा नि पाई ! हामा नर मनुष ला नारीक देख्वार नजरिया बदली गिसे , नारीर भावना ला कदर करवार छोरि दिसी ! हामा नर मानुष ला नारीर संगे व्यवहार ला बद्लाई दिसी ! नरकेर दुवारत बठाई दिसी ! गटे दोष ला नारीर उपरत फेकाई दिसी ! आपने पुरुष्वत बेनाए राखवार ताने आर आप्नार अभिमानक ठेश ना पुगोक कहे नारीक हर समयत हर बखत दोषी करार करते आसी चि ! हामा नर मानुष ला जुखुन चाहे ते नारीर माध्यम से स्वर्गेर दुवार खुल्वा सक्म ! रास्ता देख्वार नारी हए ! रास्ता देखाए बेरवार सिखावे आर अन्तिम मन्जिल यानी सुखीर जीवन दिलाए दिबे ! नारीक त्यागेर भावना छे , सहनशिलतार भण्डार छे ! नारी सामाजेर असल पहिचान हए !
जीवन  मरनेर शीतल , जलधार हए नारी ...
 बिधुतार लेखार सृष्टी , श्रींगार हए नारी ....
अये बहिनि ,अए माता , अए निर्माता ....
दिव्य गुण से भराल , अवतार ह्ये नारी !!!



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